वर्ष के अंत में एक अत्यंत महत्वपूर्ण घटना में चीन के राष्ट्रपति शी जीनपिंग जो खुद को एक प्रकार का आधुनिक सम्राट समझने लगे थे, के मज़बूत लगने वाले क़िले की कुछ ईंटें गिरनी तो कुछ खिसकनी शुरू हुई हैं। यह प्रक्रिया रूक जाती है या जारी रहती है, पर वैश्विक राजनीति का भविष्य टिका है। चीन एक सुपरपावर है जो शांत और भद्र नहीं है। वह आक्रामक और विध्वंसक महाशक्ति है। उसे यह छवि देने में शी जीनपिंग की बड़ी भूमिका रही है। वह माओ त्सी तुंग की तरह एकमात्र और सर्वोच्च नेता बनना चाहते है पर भूल गए कि दुनिया बदल गई है और चीन के लोग भी आज़ादी की हवा से अछूते नहीं है। हर ताकतवर नेता के पतन के लिए कई बार अचानक वह मुसीबत सामने आ जाती है जिसका उसे अन्दाज़ा नहीं होता। शी जीनपिंग के लिए मुसीबत वह करोना वायरस बन गई जिसने चीन के शहर वुहान से निकल कर सारी दुनिया में तबाही मचा दी थी। शी जीनपिंग ने सख़्ती कर अपने संक्रमित लोगों को घरों में बंद कर दिया था। तीन साल लॉकडाउन चला। चीन से असंतोष की खबरे यदाकदा निकलती रही पर वहाँ कितनी तबाही हुई है उसका कोई सही आँकड़ा नहीं है। पर ज़्यादती की एक क्रूर घटना के कारण सरकार को लोगों से ऐसी चुनौती मिली कि अपने आप को अचूक और जनता की आलोचना से उपर समझने वाले शी जीनपिंग को झुकना पड़ा और अपनी सख़्त नीति वापिस लेनी पड़ी।
जिसे ज़ीरो कोविड पॉलिसी कहा जाता है, उसके नीचे करोड़ों लोग घरों में बंद कर दिए गए थे। कइयों के घर के दरवाज़े कीलों से बंद कर दिए गए कि वह बाहर निकल कर संक्रमण न फैला सकें। वह घर का सामान या दवाइयों के लिए भी घरों से बाहर नहीं निकल सकते थे। नवम्बर में उरमकी शहर में इसी तरह बंद 10 लोग उस वकत झुलस कर मारे गए जब उनकी इमारत को आग लग गई और निकलने के सारे रास्ते बंद थे। सरकार की इस क्रूर असंवेदना के कारण लोगों का ग़ुस्सा लावा की तरह फूट गया। लोगों ने खुलेआम शी का इस्तीफ़ा माँग लिया और अपनी अकड़ छोड़ शी जीनपिंग के झुकना पड़ा। देश खोल दिया गया। लॉकडाउन उठा लिया गया। इसका परिणाम यह हुआ कि संक्रमण चारों तरफ़ फैल रहा है। अस्पताल भारी दबाव में है। शमशानों में जगह नहीं मिल रही। भारत समेत कई देशों ने चीन से आने वालों पर पाबंदियाँ लगा दी हैं। चीन ने कोविड पीड़ितों और हताहत की संख्या बताना बंद कर दिया है पर खबरें बाहर निकलनी शुरू हो गईं हैं। जेजियांग प्रांत के स्वास्थ्य अधिकारियों ने माना कि हर सप्ताह 10 लाख लोग संक्रमित हो रहे हैं। हैनान प्रांत ने माना कि संक्रमण की दर 50 प्रतिशत को पार कर गई हैं। सारे देश से ऐसी ही खबरें हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन बार बार अनुरोध कर रहा है पर चीन जानकारी नहीं दे रहा। इंग्लैंड स्थित संस्था एयरफिनिटी के अनुसार अनुमान है कि चीन में रोज़ाना 9000 लोग कोविड से मर रहें हैं। इंग्लैंड के विशेषज्ञ कहते हैं कि यह संख्या दैनिक 25000 तक जा सकती है और कुल छ: लाख लोग वहाँ कोविड से मर सकतें है।
चीन सरकार का मानना था कि अधिक देर सख़्त कदम उठा कर वह कोविड को नियंत्रण में कर लेंगें। भारत, ब्रिटेन, अमेरिका जैसे देशों नें भी लॉकडाउन लगाए थे पर जल्द समझ आ गया कि यह ग़लत रास्ता है। लोगों का रोज़गार छिन गया और अर्थव्यवस्था को भारी धक्का लगा। पिछले साल अप्रैल मई में जब दूसरी लहर चली तो केन्द्रीय और प्रादेशिक सरकारों ने लॉकडाउन नहीं लगाया। अर्थव्यवस्था का पहिया चलता रखा गया और भारत की अर्थव्यवस्था विश्व को राहत दे रही है। सही समझा गया कि हमें इस वायरस के साथ जीना है। पर चीन अपनी नीति पर अड़ा रहा। शी जीनपिंग दुनिया और अपने लोगों के बताना चाहते थे कि कोविड से लड़ने का उनका मॉडल बाक़ी देशों से बेहतर है जिस तरह उनकी व्यवस्था बाकियों से श्रेष्ठ है। उन्होने इस ग़लत नीति को अपनी प्रतिष्ठा और सर्वोच्च राष्ट्रीय हित का मामला बना दिया। परिणाम यह हुआ कि चीनी वैक्सीन की गुणवत्ता और टीकाकरण अभियान की कमियों के बारे व्यवस्था ख़ामोश हो गई। अब बाक़ी दुनिया अपने काम धंधे में लग गई है पर चीन अभी कोविड से भिड़ रहा है और पहली बार सरकार को यू-टर्न लेना पड़ा है।
देश भर में पहली बार हुए ऐसे प्रदर्शनों से शी जीनपिंग का प्रभुत्व कम हुआ है। प्रदर्शनकारी बता गए कि चीन की माई -बाप सरकार को मालूम नहीं कि लोगों के हित में क्या है? जैसा कई तानाशाही सरकारों को साथ हो चुका है, वह समझते नहीं कि आज के युग में बुरी खबरे छिपाई नहीं जा सकती। लोग आपकी ग़लत और जर्जर नीतियों को और बर्दाश्त करने के लिए तैयार नहीं। सीएनएन ने बताया है कि शी जीनपिंग के इस्तीफ़े की माँग तो अब बंद हो गई है पर देश भर में हताशा की भावना फैल गई है। जो सरकारें समझती हैं कि वह लोगों को बंद कर अपना काम चला लेंगी, अब खतरें में है। साऊदी अरब जैसा कट्टर देश भी मजबूरन खुल रहा है। लोगों को निजी आज़ादी चाहिए। जो तंत्र इस पर पाबंदी लगाने की कोशिश करेगा वह खुद को ख़तरे में डाल रहा है। एक चिंगारी दावानल बन सकती है।
संकट से निबटने में चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की क्षमता और ताक़त को कम नहीं आँकना चाहिए। उनकी जड़ें बहुत गहरी हैं। वह पहले भी कई संकट झेल चुकें है। आज भी अमेरिका और पश्चिमी देशों के स्पष्ट बैर का सामना कर रहें है। चीन झुकने को तैयार नहीं और ताइवान को दबाव में रख रहा है। पर चीनी लोगों को भी कम नहीं आंकना चाहिए। वह बहुत उद्यमी लोग हैं जिन्होंने दुनिया भर में अपनी संस्कृति को क़ायम रखते हुए अपनी जगह बनाई है। चीन के लोग भी भेड़ बकरी नहीं जिन्हें किधर भी हांक दो। चीन में हर साल छोटे स्तर के हज़ारों प्रदर्शन होते है। सरकार इन्हें बर्दाश्त करती है क्योंकि यह स्थानीय स्तर पर थे। पहली बार सरकार की जीरो कोविड नीति को लेकर पूरे देश में प्रदर्शन हुए हैं। पूर्व विदेश सचिव विजय गोखले ने लिखा है कि ‘ऐसे प्रदर्शन कई पीढ़ियों में देखे नहीं गए’। 70 उच्च शिक्षा संस्थानों में एक साथ विरोध प्रदर्शन हुए थे। ऐसे प्रदर्शनों का वैश्विक अंजाम होता है। ईरान की कट्टर सरकार भुगत रही है।
प्रदर्शनकारियोंका कोई नेता नहीं था। पेंग ज़ाई ज़ू जिसने पिछले अक्तूबर बीजिंग में विरोध का झंडा लहराने की जुर्रत की थी ने अपनी माँग रखी थी, ‘ ज़ीरो कोविंड नहीं ज़िन्दगी, मार्शल लॉकडाउन नहीं आज़ादी, झूठ नहीं गरिमा, सांस्कृतिक क्रान्ति नहीं सुधार,तानाशाही नहीं लोकतंत्र, गुलाम नहीं नागरिक’। चीन में ऐसी बात कहने, कम्युनिस्ट पार्टी की अवज्ञा करने, और खुलेआम शी जीनपिंग का इस्तीफ़ा माँगने के लिए बहुत हिम्मत चाहिए। पर चीन के लोग यह दिखा रहें हैं। निश्चित तौर पर ऑल इज नॉट वैल विद चायना ! एक तरफ़ सरकार रक्षात्मक है तो दूसरी तरफ़ अर्थव्यवस्था धीमी पड़ रही है। 3 प्रतिशत की उनकी विकास की दर हम से आधी है। 2023 और बुरा रहने की सम्भावना है। अर्थव्यवस्था को नियंत्रण से बाहर संक्रमण से और धक्का पहुँचा रहा है। लम्बे लॉकडाउन के कारण कारख़ाने और बिज़नस सब प्रभावित हैं। अक्तूबर में विदेशी निवेशकों ने चीन के वित्तीय बाज़ार से 9 अरब डालर निकाले थे। यह प्रक्रिया चल रही है क्योंकि चीन निवेशक के लिए ‘ हॉटस्पॉट’ नहीं रहा। कई कम्पनियाँ चीन छोड़ रही हैं।
शी जीनपिंग माओ त्सी तुंग के प्रशंसक हैं जिसने सांस्कृतिक क्रान्ति और ग्रेट लीप फ़ॉर्वर्ड के दौरान लाखों लोगों को मरवा दिया था। पर आज का चीन ऐसी क्रूरता बर्दाश्त नहीं करेगा। चमकते बड़े शहरों के बाहर स्वास्थ्य सेवाएँ निम्न है। सिंगापुर स्थित चीनी मामलों की विशेषज्ञ अनुराग विश्वनाथ का मानना है कि चीन की सरकार के लिए ख़तरनाक स्थिति पैदा हो सकती है। उन्होंने चौंगकविंग का वर्णन किया है जिसने पिछले साल नवम्बर में लिखा था कि दुनिया किसी अलग ग्रह पर रह रही है और हम किसी और पर। उसने तब कहा था कि, ‘ दुनिया में एक बीमारी है कि आप गरीब हो और दूसरी बीमारी है कि आप के पास आज़ादी न हो। हम दोनो बीमारी से ग्रस्त हैं’। उसे गिरफतार कर लिया गया। चीन की सरकार के पास दमन के सिवाय और कुछ रहा भी नहीं।
चीन की कम्युनिस्ट पार्टी का अपने लोगो के साथ अघोषित समझौता था कि हम आपको आर्थिक तरक़्क़ी देंगे पर आपकी व्यक्तिगत आज़ादी पर पाबंदी रहेगी। चीन के लोग यह स्वीकार करते रहे क्योंकि उन्होंने अप्रत्याशित तरक़्क़ी की। जीवन स्तर बहुत बढ़िया हो गया। हम से तो वह बहुत आगे है। पर अब अर्थव्यवस्था में तेज़ी से गिरावट आ रही है जो शी जीनपिंग के नेतृत्व की आभा को तमाम कर गई है। अक्तूबर में पार्टी ने संविधान को बदलते हुए उन्हें तीसरी बार राष्ट्रपति बना दिया था। ऐसा आभास मिलता है कि वह आजीवन चीन के ताकतवार नेता रहना चाहतें हैं। उन्होंने उन सब को एकतरफ़ लगा दिया जो उन्हें चुनौती दे सकते थे। लेकिन नीचे से ज़मीन खिसकते देर नहीं लगती। पर अब वह कोविड में फँस गए है। कोई नहीं जानता कि यह वायरस उन्हें और चीन को कहां लेकर जाएगा। प्रदर्शनों से सरकार तो नहीं बदलेगी पर उसका रुतबा, उसका आत्मविश्वास अवश्य प्रभावित होगा। जैसे विजय गोखले ने भी लिखा है ‘… यह देखने की बात होगी कि इस प्रकरण से शी कितने क्षतिग्रस्त होकर निकलते हैं’।
शी जीनपिंग ने एक बार कहा था कि ‘शासन चलाना मछली तलने के समान है। या तो मछली घुल सकती है या ज़रूरत से अधिक तली जा सकती है’। पर यहाँ उनकी समस्या और है। मछली कह रही है कि वह और तले जाने के लिए तैयार नहीं!