
नई दिल्ली में जी-20 सम्मेलन सफलता पूर्वक सम्पन्न हो गया। इस ग्रुप के देशों के पास दुनिया की 85 प्रतिशत जीडीपी और दो तिहाई जनसंख्या है। बाली में सम्पन्न पिछले सम्मेलन में युक्रेन को लेकर सर्वसम्मति नहीं बन सकी। इस बार कूटनीतिक दक्षता दिखाते हुए हम युक्रेन को लेकर पश्चिम और रूस-चीन के बीच, विकास को लेकर उत्तर और दक्षिण के देशों के बीच, मौसम को लेकर सबमे मतभेदों के बावजूद सबको एक साथ लाने में सफल रहे है। अंतराष्ट्रीय राजनीति के बेहद चुनौतीपूर्ण समय में सर्वसम्मति बनाना हमारी कूटनीति का करिश्मा ही कहा जाएगा। कूटनीति का हमारा सदियों का इतिहास रहा है और हम पश्चिम और पूर्व के बीच सेतु रहें है। जब से पुतिन की मूर्खता से रूस ने युक्रेन में युद्ध शुरू किया है विश्व तनावग्रस्त है। हर मंच पर झगड़ा रहा है। पर मध्य मार्ग पर चलते हुए सबकी सहमति से मोदी सरकार ने सम्मेलन को किसी भी विवाद के बिना समाप्त करवा दिया। और भारत को मज़बूती से वैश्विक विरोधाभास हल करने वाला देश स्थापित कर दिया है। अमेरिका, रूस, चीन कोई भी कह नहीं रहा कि वह असंतुष्ट हैं। फ़्रांस ने माना है कि बहुत कम देश है जिनमें मसले सुलझाने की वह क्षमता है जो भारत के पास है।
भारत में इससे पहले ऐसा आयोजन, गुट निरपेक्ष शिखर सम्मेलन, जहां कोई 100 देशों के बड़े नेता आए थे मार्च 1983 में हुआ था जब इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थीं। क्यूबा के प्रसिद्ध नेता फ़िडल कास्ट्रो ने उन्हें गले लगाते हुए प्यार से कहा था, “माई सिस्टर,माई डीयर सिस्टर”। अगर वह इंदिरा गांधी का शो था यह नरेन्द्र मोदी की कुशल कूटनीति का प्रदर्शन था। अमेरिका के राष्ट्रपति बाइडेन यह कहना कि , “आप हमें साथ ला रहे हो, हमें साथ रख रहे हो, यह याद दिलाते हुए कि हम में साथ मिलकर चुनौतियों का सामना करने की क्षमता है”, बहुत बड़ी प्रशंसा है। पुतिन की अनुपस्थिति में आए रूसी विदेश मंत्री सरजी लवरव का भारत की प्रशंसा करते हुए कहना था कि यह शिखर सम्मेलन ‘ब्रेकथ्रू इवेंट’ अर्थात् गतिरोध समाप्त करने वाला समागम था। 1983 से लेकर अब तक दुनिया बहुत बदल गई है। गुट निरपेक्ष आन्दोलन आख़िरी साँस ले रहा है। प्रधानमंत्री मोदी तो उसके सम्मेलनों में जाते ही नहीं। भारत भी बहुत बदल गया। उस समय का दिल्ली का पालम हवाई अड्डा तो रेलवे स्टेशन लगता था जबकि वर्तमान इंदिरा गांधी हवाई अड्डा कई पश्चिमी हवाई अड्डों को मात देता है। नई दिल्ली भी बदल गई। कुछ श्रेय शीला दीक्षित को जाता है पर असली श्रेय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को जाता है जिन्होंने इसे उभर रही शक्ति की भव्य राजधानी बना दिया है। नईदिलली में अक्षरधाम मंदिर को छोड़ कर जो कुछ भी भव्य है वह या तो मुग़लों का बनाया गया था, या अंग्रेजों का। आजाद भारत में पहली बार दिल्ली को ऐसे बदला गया है कि इसे ‘नई’ नई दिल्ली कहा जा सकता है। नया संसद भवन, या राजपथ का कायाकल्प, या शहीद स्मारक, या भारत मंडपम जहां जी-20 का आयोजन किया गया, सब उच्च स्तर के आर्किटेक्चर का परिचय दे रहें हैं।
2008 की ओलम्पिक खेलों का सफल आयोजन कर चीन ने दुनिया को बहुत प्रभावित किया था जिसका उन्हें बहुत फ़ायदा भी हुआ था। इसी प्रकार दिल्ली समेत 60 भारतीय शहरों में विभिन्न विषयों पर जी-20 की बैठकों का आयोजन कर मोदी सरकार ने भी भारत की विविधता और क्षमता सब का प्रदर्शन कर दिया। उड़ीसा के 13वीं शताब्दी के प्रसिद्ध और प्राचीन कोणार्क सूर्य मंदिर के कालचक्र की प्रतिकृति के सामने विदेशी मेहमानों को स्वागत किया गया। कोणार्क भारत की उन्नत और प्राचीन सभ्यता का प्रतीक है। 900 साल से समय और काल की सही गणना दिखाने वाला यह सचमुच अजूबा है। रात्रि भोज से पहले मेहमानों का स्वागत करने के स्थल की पृष्ठभूमि में प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय का चित्र लगा था। ताजमहल भी हमारी विरासत का हिस्सा है पर हमारी सभ्यता तो उससे बहुत प्राचीन है। उसका परिचय करवा बहुत बड़ी कमी पूरी की गई है। यह हमारी कूटनीति का बेहतरीन लम्हा था। कांग्रेस के लोग इस सफल आयोजन पर कमज़ोरियाँ निकाल रहें हैं, अनावश्यक आलोचना कर रहें हैं। यह सही नहीं है। कई लम्हे होतें हैं जो सबके साँझे होते है उनका जश्न मनाना चाहिए। यह शिखर सम्मेलन ऐसा लम्हा था। आलोचना करने के लिए और बहुत कुछ है।
इस सम्मेलन से तीन मुख्य उपलब्धियाँ है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि सब कुछ सहमति से हुआ। सम्मेलन से पहले अमेरिका ने चीन को चेतावनी दी थी कि वह विघ्नकर्ता न बने। शायद इस चेतावनी का असर हुआ और चीन ने बहुत असहयोग नहीं दिखाया। यह भी हो सकता है कि वह विश्व राय के विरूद्ध नहीं जाना चाहते थे। रूस इसलिए सहमत हो गया क्योंकि युक्रेन में ‘रूसी आक्रमण’ का कोई ज़िक्र नहीं है पर रूस को यह ज़रूर बता दिया गया है, जो बात पहले भी प्रधानमंत्री मोदी रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को स्पष्ट कर चुकें हैं, कि ‘यह युद्ध का युग नही है’। घोषणा पत्र में यह लिखा होना कि “ हर राष्ट्र को अंतरराष्ट्रीय क़ानून का पालन करना चाहिए, ज़मीन हथियाने के लिए ताक़त के इस्तेमाल से परहेज़ करना चाहिए,न्यायोचित शान्ति की स्थापना के लिए कदम उठाने चाहिए, परमाणु हथियारों का इस्तेमाल अस्वीकार्य है”, नाम लिए बिना रूस को चेतावनी है कि उसकी युक्रेन में कार्यवाही से अब दुनिया तंग आ चुकी है और उसे युद्ध बंद करने की तरफ़ कदम उठाने चाहिए।
यह सम्मेलन बता गया कि वाशिंगटन और नईदिलली में घनिष्ठ सम्बंध हैं और दोनों के बीच न केवल आपसी बल्कि वैश्विक मामलों पर भी लगातार वार्ता चल रही है और सहमति बन रही है। जी-20 के नेताओं को भी बाली की असफलता परेशान कर रही थी। पश्चिम के देश समझ गए कि अगर यह सम्मेलन भी असफल रहा, तो रूस के साथ मिल कर चीन जो वैकल्पिक विश्व व्यवस्था खड़ा करने का प्रयास कर रहा है, उसे बढ़ावा मिल जाएगा। ब्रिक्स के बारे पहले ही शिकायतें है कि चीन इसे अपने मुताबिक़ घुमाने की कोशिश कर रहा है। केवल भारत रूकावट है इसलिए पश्चिमी गुट समझ गया कि भारत के नेतृत्व को मज़बूत करना उनके हित में है। चीन को नियंत्रण में रखना साँझा लक्ष्य है।
एक अलग संदर्भ में सीएनएन ने कहा था, “हम एक और एशियाई देश का उत्थान देख रहें हैं। और यह चीन नही, भारत है”। यह अच्छा संयोग है कि यह सम्मेलन चन्द्रयान-3 की सफल लैंडिंग के बाद आया है। हमने दुनिया को बता दिया है कि हम वहाँ तक पहुँच सकते हैं जहां पहले कोई जाने में सफल नही हुआ। दूसरी बड़ी उपलब्धि है कि भारत की पहल पर अफ़्रीकन यूनियन जो 55 देशों का प्रतिनिधित्व करता है, को स्थाई सदस्य बना लिया गया है। अर्थात् एक प्रकार से अब यह जी-21बन गया है। अफ़्रीका के साथ हमारे महात्मा गांधी के समय से सम्बन्ध है लेकिन उन्हें शिकायत रहती है कि उनका ध्यान नहीं रखा जाता। जब अफ़्रीकन यूनियन के अध्यक्ष कोमोरोस के राष्ट्रपति अजाली आसूमनी को प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी जगह लेने के लिए आमंत्रित किया तो जिस गर्मजोशी से वह मोदी से गले लगे वह बताता है कि हमारे कदम को कितना सराहा गया है। चीन वहाँ बहुत पैर जमाने की कोशिश कर रहा था, भारत ने इसका प्रभावशाली जवाब दे दिया है।
हमारे लिए बहुत महत्व तीसरी बात रखती है। भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने मित्र देशों से मिल कर भारत-मध्य पूर्व- योरूप आर्थिक गलियारा स्थापित करने की घोषणा की। इस गलियारे में बंदरगाह, रेलवे नेटवर्क और रोड नेटवर्क होगा। इससे भारत से लेकर योरूप तक के सारे क्षेत्र को विकास मिलेगा। इस क्षेत्र में चीन के बीआरआई गलियारे को लेकर बहुत शंकाऐं और शिकायतें हैं। चीन देशों को क़र्ज़ के जाल में फँसा रहा है, पाकिस्तान और श्रीलंका इसके उदाहरण हैं। अब इसका विकल्प प्रस्तुत कर दिया गया है। हमें मध्यपूर्व के देशों और योरूप के साथ सीधा रास्ता मिल जाएगा। पाकिस्तान और अलग रह जाएगा। भारत से योरूप तक माल ले जाने के समय में 40 प्रतिशत की भारी बचत होगी। इस वक़्त जर्मनी तक माल पहुँचाने मे 36 दिन लगते हैं जो कम होकर 22 दिन रह जाएँगे। कि चीन को इससे तकलीफ़ हुई है यह उनके सरकारी पत्र ग्लोबल टाईम्स की टिप्पणी से पता चलता है। अख़बार का कहना था कि अमेरिका बातें अंधिक करता है काम कम। उन्हें यह भी शिकायत है कि अमेरिका चीन को ‘आईसोलेट’ अर्थात् अलग थलग करने की कोशिश कर रहा है। यह शिकायत तो ठीक लगती है। अपनी करतूतों के कारण ही चीन ने भारत को अमेरिका के नज़दीक करवा दिया है। जी- 20 सम्मेलन में दोनों रूस के और चीन के राष्ट्रपति नहीं आए। दोनों ने देखा होगा कि उनकी अधिक चिन्ता किए बिना दुनिया आगे बढ़ गई है। जी-20 का यह भी संदेश है।
अंत में :दुनिया के सबसे शक्तिशाली देशों के नेताओं ने राजघाट जा कर अहिंसा और शान्ति के पुजारी महात्मा गांधी की समाधि पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की। वह दुबला पतला अर्ध नंगा इंसान जिसने जीवन में कोई पद नहीं लिया था, और साम्प्रदायिक सौहार्द के लिए अपना बलिदान दे दिया था, आज दुनिया का सबसे सम्मानित इंसान है। दुनिया भर में उनकी मूर्तियाँ लगती है। दुनिया में और कोई नहीं जिसके सामने बिना सवाल किए दुनिया के सबसे ताकतवर लोग सर झुकाते हैं। हमारे देश में दुर्भाग्यवश कुछ लोग अपने साम्प्रदायिक दृष्टिकोण के कारण उन्हें गालियाँ दे रहें हैं यहाँ तक कि हत्यारे गोडसे का महिमागान करते है। बापू की समाधि पर एकसाथ सर झुका कर जी- 20 के नेताओं ने देश के अंदर नफ़रत प्रसारित करने वालों को भी ज़ोरदार संदेश दे दिया।