
दुनिया ने ऐसा दृश्य पहले कभी नहीं देखा था। दुनिया के सबसे शक्तिशाली दफ़्तर, अमेरिका के राष्ट्रपति के वाशिंगटन स्थित ओवल आफ़िस, में अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रम्प और यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की के बीच मुलाक़ात हो रही थी। शुरू के शिष्टाचार के बाद बातचीत गाली गलौज में बदल गई। स्थिति इतनी तनावपूर्ण हो गई कि यूक्रेन के प्रतिनिधि मंडल को व्हाइट हाउस छोड़ने के लिए कह दिया गया। ट्रम्प और उनके उपराष्ट्रपति वैंस चाहते थे कि जेलेंस्की रूस के साथ युद्ध विराम को तैयार हो जाएं जबकि यूक्रेन के राष्ट्रपति सुरक्षा की मज़बूत गारंटी की माँग कर रहे थे। शीघ्र ही वार्ता अशोभनीय तूं तूं मैं मैं में बदल गई और जेलेंस्की बिना भोजन किए ग़ुस्से में वहाँ से निकल आए। और यह सब तमाशा मीडिया के सामने हुआ। इससे पहले ट्रम्प ने जेलेंस्की पर गम्भीर आरोप लगाया कि वह “लाखों लोगों की ज़िन्दगी से जुआ खेल रहें हैं” और उनके कारण तीसरा विश्व युद्ध शुरू हो सकता है।
कूटनीति बंद कमरे में होती है पर यहाँ मीडिया को बुला कर यूक्रेन के राष्ट्रपति को फटकार लगाई गई। जब से ट्रम्प राष्ट्रपति बने हैं उनका रवैया रूस पक्षीय और यूक्रेन विरोधी है। वह जेलेंस्की को डिक्टेटर कह चुकें हैं और यहाँ तक कह दिया कि उन्होंने युद्ध शुरू किया है जबकि सारी दुनिया जानती है कि युद्ध 2 फ़रवरी 2022 को रूस के युक्रेन पर हमले से शुरू हुआ था। वरिष्ठ,अमेरिकी पत्रकार क्रिसटीन अमनपोर ने हैरान हो लिखा है, कि “ऐसा लगता था कि अमेरिका के राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति पुतिन का लिखा पढ़ रहें हैं”। पूर्व राष्ट्रपति बाइडेन पुतिन को युद्ध अपराधी कह चुकें हैं जबकि ट्रम्प की पुतिन के साथ दोस्ती है। ट्रम्प तो इतने भड़क गए कि धमकी दे दी कि वह यूक्रेन की मदद बंद कर देंगे और, “ यूक्रेन अपना अंजाम भुगतेगा”।
जब से ट्रम्प अमेरिका के राष्ट्रपति बने हैं दुनिया साँस रोक कर उनकी हरकतें देख रही हैं। जैसे मैं पहले भी लिख चुका हूँ, ट्रम्प अत्यंत अहंकारी और अस्थिर स्वभाव के व्यक्ति हैं। उनके आने के बाद दुनिया, अमेरिका समेत, में अस्थिरता और अशांति फैल रही है। वह द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद बनाए गठबंधनों और नियमों में विश्वास नहीं रखते और धमकी और धौंस से दूसरों को झुकाने की कोशिश कर रहें हैं। कई विशेषज्ञ तो इसे ‘माफिया कूटनीति’ कह रहें हैं। अमेरिका में वह हज़ारों सरकारी अधिकारी बर्खास्त कर चुकें हैं जिससे समाज में बहुत अशान्ति है। कई अदालतें ट्रम्प के मनमाने आदेशों को रोक चुकीं हैं। लेकिन उनका असली ध्यान विश्व व्यवस्था बदलने पर है जिसके लिए वह रूस से दोस्ती चाहतें हैं और यूक्रेन की क़ुर्बानी के लिए तैयार बैठें हैं। यूक्रेन की हालत तो ‘चढ़ जा बच्चा सूली पर भगवान भली करेंगे’ वाली बन रही है। यूक्रेन को उकसा कर रूस के साथ भिड़ंत करवा दी गई जिस दौरान उनके लाखों लोग मारे गए और पाँचवें हिस्से पर रूस का क़ब्ज़ा हो गया। अब अमेरिका अपना हाथ खींच रहा है।
एक दशक अमेरिका समेत पश्चिमी गठबंधन रूस को खलनायक और पुतिन को ‘युद्ध अपराधी’ कहते रहें हैं। पर ट्रम्प पुतिन के साथ मज़बूत सम्बंध चाहतें हैं जबकि जेलेंस्की और यूक्रेन के लिए यह अस्तित्व का सवाल है। अमेरिका की नीति में परिवर्तन 1945 के विश्व युद्ध के बाद विश्व राजनीति में सबसे महत्वपूर्ण मोड़ है। अमेरिका का नज़रिया बदल रहा है। ट्रम्प तो योरूप से भी दूरी बढ़ा रहें हैं। ट्रम्प की नीति से पश्चिमी गठबंधन में फूट नज़र आने लगी है। ओवल आफिस में झड़प के बाद जिस तरह से एक के बाद एक योरूपिए तथा कनाडा की सरकारों ने जेलेंस्की का समर्थन किया हैं उससे ट्रम्प को भी मालूम हो जाएगा कि पश्चिम में अमेरिका अलग थलग पड़ रहा है। योरूप को चिन्ता है कि अगर यूक्रेन में रूस की जीत हो गई तो वह फिर किसी और छोटे पड़ोसी देश पर हमला कर सकता है। अमेरिका पर सुरक्षा का भरोसा नहीं रहा। जर्मनी के अगले चांसलर बनने वाले फ़्रेडेरिक मर्ज़ ने तो अभी से कहना शुरू कर दिया है कि ‘योरूप को अमेरिका से आज़ाद हो जाना चाहिए’। इस सारे घटनाक्रम से रूस और उसके नेता पुतिन गद्गद् होंगे। कुछ समय पहले तक उन्हें अंतराष्ट्रीय खलनायक कहा जा रहा था। अब अचानक स्थिति ने करवट ली है और ट्रम्प के आने के बाद न केवल यूक्रेन को जोखिम भरे रास्ते पर छोड़ दिया गया है, बल्कि अमेरिका और योरूप और अमेरिका और नाटों में स्पष्ट दरार नज़र आ रही है। न्यूयार्क टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार यह नाटो के ख़ात्मे की शुरूआत हो सकती है। अमेरिका के नए रक्षा मंत्री ने कहा ही है कि अमेरिका योरूप की सुरक्षा से पीछे हट सकता है।
तीन साल पहले रूस ने उस यूक्रेन पर हमला कर दिया था जिसके साथ उनके बिरादराना रिश्ते थे। पुतिन का अंदाज़ा था कि तीन हफतें मे युदध समाप्त हो जाएगा। तीन साल के बाद पता चलता है कि युद्ध से रूस कमजोर पड़ चुका है पर यूक्रेन तो तबाह हो चुका है। देश के पाँचवें हिस्से पर रूस का क़ब्ज़ा है जो वह छोड़ने को तैयार नही लेकिन लम्बा युद्ध रूस भी लड़ नहीं सकता। बुरी तरह से फँसे रूस को अब ट्रम्प ने लाइफ़ लाइन फेंक दी है और दुनिया का संतुलन गड़बड़ा गया है। अपने देश में भी ट्रम्प के यू-टर्न की खूब आलोचना हो रही है पर रूस को तो राहत मिल गई है। 1945 में द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद यालटा में रूसवैल्ट-चर्चिल- स्टैलिन मिले थे और उन्होंने नए विश्व व्यवस्था की रूप रेखा तय की थी। इसके बाद क्षेत्रीय युद्ध को छोड़ दें तो कुछ ऐसा नही हुआ जिसमें बड़ी शुक्तियां संलिप्त हो। यह स्थिरता पुतिन की यूक्रेन में कार्रवाई ने तोड़ दी है। अब ट्रम्प के यू टर्न ने उस व्यवस्था के जारी रहने पर ही सवालिया निशान लगा दिया है। वर्षों के बाद संयुक्त राष्ट्र में मतदान के समय अमेरिका ने रूस का साथ दिया है। एक पश्चिमी पत्रकार ने इसे ‘भूकम्पीय बदलाव’ कहा है।
दूसरा भूकम्पीय झटका यूक्रेन को ओवल आफिस में लगा है जहां पीड़ित को ही मुजरिम करार देने की कोशिश की गई। यूक्रेन के हश्र से बाक़ी देशों के लिए बड़ा सबक़ है। किसी की मेहरबानी पर निर्भर नहीं रहना चाहिए। कमजोर देश जो अभी तक अमरीकी छतरी के नीचे खुद को सुरक्षित मान रहे थे, वह ट्रम्प राज में खतरें में हो सकते हैं। ताइवान जैसे देश चिन्तित होंगे कि अगर चीन हमला करता है तो अमेरिका मदद नहीं करेगा। इसका अमेरिका की वैश्विक छवि पर असर पड़ेगा। नैतिक शक्ति बिल्कुल ख़त्म हो जाएगी। अभी तक अमेरिका खुद को ‘फ़्री वर्ल्ड’ का नेता कहता रहा है। पर अब वह पुतिन का पक्ष ले रहे हैं जिन्होंने बिना किसी उत्तेजना से छोटे मुल्क पर हमला किया था। ट्रम्प और जेलेंस्की के बीच जो हाई वोल्टेज बहस हुई है वह दुनिया के लिए संदेश है कि हर देश को खुद की रक्षा करनी होगी। अमरीकी ताक़त की विश्वसनीयता नहीं रही। रूस में हमारे पूर्व राजदूत डी बी वंकटेश वर्मा ने सही लिखा है, “जो नीति विकल्प चुने जाते हैं उनके कई बार नतीजे निकलते हैं। रूस के साथ अपने टकराव में यूक्रेन ने अमेरिका और योरूप का प्रतिनिधि बनना स्वीकार किया …और परिणाम विनाशकारी रहें हैं—उनका इलाक़ा छिन गया है, एक पीढ़ी तबाह हो गई है और देश का भविष्य अनिश्चित है… युद्ध में तबाही के बाद यूक्रेन अब शान्ति के भारी जुर्माने की ईंतजार कर रहा है”। व्हाइट हाउस में जो टकराव हुई है उसके यूक्रेन, योरूप और खुद अमेरिका के लिए बुरे परिणाम निकल सकते है। ट्रम्प अमेरिका को ग्रेट बनाना चाहते हैं पर इस तरह सिद्धांतों और परम्परा को रौंद कर अमेरिका महान नहीं बनेगा। देश महान अपने मूल्यों और सिद्धांतों से बनता है, कोरी धौंस से नही। इस अशोभनीय घटनाक्रम से केवल एक व्यक्ति संतुष्ट होगा, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन
दूसरों पर अस्तित्व के लिए जो निर्भर रहतें हैं उनका कई बार ऐसा हश्र होता है। योरूप का अपना इतिहास ऐसे मिसालों से भरा है जहां बड़ी शक्तियों ने अपने समझौते के लिए छोटे देशों की क़ुर्बानी दे दी थी। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद शुरू में जर्मनी को चार हिस्सों में बाँट दिया गया था। अब फिर बड़ी ताक़तों के बीच ‘पावर प्ले’ शुरू हो चुका है। यूक्रेन और ताइवान जैसे देशों के लिए मुसीबत खड़ी हो सकती है। रूस की सफलता से चीन प्रोत्साहित हो सकता है। हमारे लिए भी सबक़ है। अभी तक यह ही समझा गया कि चीन के साथ टकराव में अमेरिका हमारा साथ देगा। अमेरिका ज़रूर चीन को नियंत्रण में रखना चाहता है और उसके उभार को रोकना चाहता है। वह चीन और रूस की दोस्ती को भी तोड़ना चाहते हैं पर डानल्ड ट्रम्प के राष्ट्रपति बनने के बाद कुछ भी निश्चित नहीं। अगर चीन के साथ कोई अच्छी ‘डील’ हो जाए तो वह संतुष्ट हो सकते हैं। रूस का रूख भी बदल सकता है। क्वाड जैसे गठबंधन का भविष्य भी अनिश्चित है क्योंकि ट्रम्प की भावी नीति के बारे कोई नहीं जानता। डानल्ड ट्रम्प ने आकर वैश्विक राजनीति और कूटनीति के नियम बदल दिए हैं। इसका अंजाम क्या होगा, यह समय बताएगा। पर पहली क़ुर्बानी यूक्रेन की होगी।