अमेरिका के पूर्व विदेशमंत्री हैनरी किसिंजर ने चीन के नेतृत्व के बारे अपनी किताब ‘ऑन चायना’ में लिखा था, “वह सौदेबाजी या वार्ता को विशेष महत्व नहीं देते… वह नहीं समझते कि व्यक्तिगत संबंध का फैसलों पर विशेष असर पड़ता है चाहे वह व्यक्तिगत संबंधों के द्वारा अपने प्रयासों को बढ़ाने की कोशिश कर सकते हैं।” अब जबकि चेन्नई के पास प्राचीन मंदिरों के शहर मामल्लापुरम में भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तथा चीन के राष्ट्रपति जी जिनपिंग एक बार फिर मिल रहे हैं, आशा है कि हमारे प्रधानमंत्री किसिंजर की इस समझदार राय को याद रखेंगे।
प्रधानमंत्री मोदी पहले शी जिनपिंग का अहमदाबाद में सागरमती के किनारे स्वागत कर चुके हैं। पिछले साल दोनों चीन के खूबसूरत शहर वुहान में मिले थे उसके बाद बहुत बढ़ा-चढ़ा कर बताया गया की संबंधों में नाटकीय परिवर्तन आया है। हमारे कूटनीतिक क्षेत्रों में तथा मीडिया के कुछ हिस्सों में ‘वुहान स्पीरिट’ अर्थात वुहान भावना की बहुत चर्चा रही। बताया गया कि इस वार्ता के बाद दोनों नेताओं ने अपने-अपने सैनिक कमांडरों से कहा है कि वह टकराव खत्म करें। तब से कोई बड़ी झड़प भी नहीं हुई लेकिन लद्दाख में घुसपैठ के प्रयास और बढ़े हैं। लद्दाख मेें विशाल पांगोंग झील के बड़े हिस्से पर चीन ने कब्जा कर रखा है इसे अब और बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा है। लेकिन कश्मीर में धारा 370 हटाने के बाद चीन का असली चेहरा एक बार फिर नंगा हो गया। वह लगभग भारत दुश्मनी पर उतर चुका है। हर अंतर्राष्ट्रीय मंच पर उसने हमारा खुला विरोध किया है। कई बार तो उसका रवैया पाकिस्तान से भी अधिक आक्रामक रहा है। कश्मीर की स्थिति को ‘खतरनाक’ तक कह दिया गया है। इस्लामाबाद स्थित चीन के राजदूत ने कहा है कि कश्मीर मुद्दे के समाधान के लिए वह पाकिस्तान की हर मदद करेंगे। चीन के इस राजदूत का कहना था कि “हम इस बात का प्रयास कर रहें हैं कि कश्मीर के लोगों को न्याय का उनका मूल अधिकार मिल जाए…चीन क्षेत्रीय शांति तथा स्थायित्व के लिए पाकिस्तान के साथ खड़ा है।” अब भी नरेन्द्र मोदी को मिलने से तीन दिन पहले इमरान खान को बीजिंग बुलाया गया है। पाकिस्तान ने जनरल बाजवा भी साथ गए हैं।
चीन और पाकिस्तान दोनों को एक-दूसरे की जरूरत है। चीन समझता है कि ऐशिया में भारत उनके प्रभुत्व को चुनौती देता है इसलिए पाकिस्तान के साथ झगड़े में हमें उलझाए रखता है। उसे इसमें कामयाबी भी मिल रही है क्योंकि हमारा सारा ध्यान पाकिस्तान की तरफ है जबकि असली चुनौती चीन से है। पूर्व रक्षामंत्री जार्ज फर्र्नांडीज ने एक बार सही चीन को खतरा नंबर 1 कहा था। लगभग दो दशक पहले जार्ज फर्नांडीज द्वारा दी गई चेतावनी आज भी सार्थक है कि “चीन ने पाकिस्तान को मिसाईल तथा परमाणु जानकारी दी है…।”तब से लेकर अब तक बहुत कुछ बदल गया। भारत बीस साल पुराना भारत नहीं रहा पर चीन लगातार ताकतवर होता जा रहा है यहां तक कि अब वह अमेरिका को भी चुनौती दे रहा है। लेकिन एक चीज़ जो नहीं बदली वह चीन का भारत द्वेष है। वह हमें ऐशिया में अपना प्रतिद्वंद्वी समझता है इसलिए दिवालिया पाकिस्तान को उठाए फिर रहा है। अब फिर उसने अरुणाचल प्रदेश में भारत की नई 17 कोर द्वारा 15000 फुट पर किए जा रहे सैनिक अभ्यास ‘हिम विजय’ पर सख्त आपत्ति की है। पूर्व राष्ट्रीय रक्षा सलाहकार शिव शंकर मेनन ने सही लिखा था, “अंतर यह है कि पाकिस्तान की सीमा पर सैनिक स्थिति है जबकि चीन के साथ हमें अलग किस्म की राजनीतिक तथा सामरिक चुनौती है।”
चीन को अपनी ताकत पर बहुत घमंड है। उनकी अर्थ व्यवस्था हमसे चार गुना बड़ी है। कुछ देर हम आगे थे पर अब फिर उनकी विकास दर हमसे अधिक है। उनका रक्षा बजट हमसे तीन गुना है लेकिन चीन यह जानता है कि वह भारत को दबा नहीं सकता। भारत की दुनिया में अपनी विशेष जगह है और पाकिस्तान तथा दक्षिण कोरिया जैसे अंतर्राष्ट्रीय खलनायकों के सिवाय कोई भी दूसरा देश चीन के साथ नहीं है। भारत ने चीन के सताए हुए जापान, वियतनाम, इंडोनेशिया जैसे देशों के साथ रिश्ते मज़बूत कर लिए हैं। पहली बार अमेरिका-भारत-जापान-आस्ट्रेलिया के विदेशमंत्री इकट्ठे मिले हैं और स्वाभाविक है कि उन्होंने चीन से उठ रही चुनौती के बारे विचार किया होगा।
ऐसे मंच में हिस्सा लेकर भारत भी चीन को स्पष्ट कर रहा है कि हम भी विकल्पहीन नहीं है। इस मामले में हमारी कूटनीति तगड़ी और चुस्त रही है। चीन इस समय फंसा हुआ है क्योंकि उन्हें दो तरफ से गंभीर चुनौती मिल रही है। अपनी पिछली सरकारों की नरम नीति को त्यागते हुए डॉनल्ड ट्रम्प ने सीधा चीन का विरोध शुरू कर दिया है। वह समझ गए, और ठीक समझ गए, कि चीन उन्हें वैश्विक स्तर पर चुनौती देने का प्रयास कर रहा है। जिन्होंने समझा था कि चीन एक जिम्मेवार महाशक्ति की तरह दुनिया में उभरेगा उन्हें धक्का पहुंचा है इसीलिए ट्रम्प ने चीन के साथ व्यापार युद्ध शुरू कर लिया है जिससे चीन को अरबों डॉलर का नुकसान हुआ। 17 वर्षों के बाद चीन की प्रगति इस साल सबसे कम रही है। अमेरिका तथा पश्चिमी देश चीन को अब सामरिक प्रतिद्वंद्वी, दुष्ट ताकत तथा नियमों की उल्लंघना करने वाला देश समझते हैं। इकनॉमिक टाईम्स ने लिखा है, “1940 के दशक के बाद पहली बार अमेरिकी प्रशासन, बिसनेस, कूटनीतिक सेवा तथा सशस्त्र सेना इस बात पर सहमत है कि अमेरिका को नए तथा सामरिक प्रतिद्वंद्वी का सामना है।”
चीन को दूसरी चुनौती घर के पास हांगकांग में मिली है जहां युवा एक प्रकार से बगावत पर उतारू हैं। वह चीन के बढ़ते प्रभाव को रोकने तथा अधिक लोकतंत्र की मांग को लेकर महीनों से प्रदर्शन कर रहें हैं। एक वक्त तो हांगकांग की जनसंख्या का चौथा हिस्सा लगभग अर्थात 20 लाख लोग चीन विरोध में सडक़ों पर उतर आए थे। अब लगातार पुलिस तथा प्रदर्शनकारियों के बीच टकराव हो रहा है। प्रदर्शन उस कानून को लेकर शुरू हुए जिसमें प्रावधान था कि अपराधियों पर चीन ले जाकर उन पर मुकद्दमा चलाया जा सकता है। यह प्रस्तावित कानून वापिस ले लिया गया है पर प्रदर्शन खत्म नहीं हो रहे। हांगकांग के प्रदर्शन जहां एक आर्थिक और व्यवसायिक केन्द्र के तौर पर उनकी छवि को तहस-नहस कर गए हैं वहां यह चीन की छवि के लिए भी बुरे हैं कि हांगकांग के लोग दुनिया की दूसरी बड़ी ताकत के नजदीक नहीं जाना चाहते और उन्हें पश्चिमी स्टाईल लोकतंत्र तथा आजादी पसंद है। अगर यह प्रदर्शन चीन के मेनलैंड पर होते तो उन्हें उस सख्ती के साथ दबा दिया जाता जैसे 1989 में लोकतंत्र की मांग को लेकर बीजिंग के त्यानआनमैन चौक में किया गया था। अगर यह प्रदर्शन रुके नहीं तो एक दिन शी जिनपिंग को दखल देना होगा लेकिन जैसे न्यूयार्क टाईम्स में स्टीवन ली मायर्स तथा जेवियर शी हर्नाडिंंज ने लिखा है, “हांगकांग में शी की कार्रवाई जोखिम भरी होगी। वह न केवल चीन की आर्थिक बदहाली से परेशान है बल्कि अमेरिका के साथ उसके रिश्ते भी बदत्तर हैं।”
इस स्थिति में मंदिरों के इस भव्य शहर मामल्लापुरम में नरेन्द्र मोदी तथा शी जिनपिंग मिल रहे हैं। चाहे उपर से पर्दा डालने की कूटनीतिक कोशिश होगी पर सच्चाई है कि व्यक्तिगत संबंध कैसे भी हो, दोनों पड़ोसी देशों के हितों में टकराव है जिस कारण अतीत में कई बार रिश्ते तल्ख रह चुके हैं जिनमें सुधार की संभावना नज़र नहीं आती। भारत ने एक दिन बड़ी ताकत बनना है। राजनीतिक मतभेदों के बावजूद हर भारतीय इस लक्ष्य से सहमत है लेकिन यह भी स्पष्ट है कि चीन को इससे तकलीफ है। चीन हमारे उत्थान को पचा नहीं पा रहा इसलिए सामरिक चुनौती दे रहा है।
तल्ख थे, तल्ख रहेंगे (India-China, Tense Relationship),